अभी तक तो विपक्ष ही हमलावर था, अब मणिपुर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो सवाल उठाए हैं, किसी भी राज्य के लिए बेहद शर्मिंदगी की बात है। और सुप्रीम कोर्ट का यह कहना भी अति गंभीर है कि मणिपुर की घटनाओं की तुलना किसी अन्य राज्य या अन्य राज्यों से नहीं की जा सकती। जबकि सत्ता में बैठा हर तीसरा नेता तत्काल पलटवार करता है कि फलां राज्य में क्या हो रहा है?
सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर को लेकर कल हुई सुनवाई के दौरान वहांं महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने के वीडियो को भयावह करार दिया और अब तक हुई कार्रवाई की जानकारी मांगी। कोर्ट ने कहा कि हम नहीं चाहते कि राज्य पुलिस मामले की जांच करे क्योंकि उन्होंने महिलाओं को दंगाई भीड़ को सौंप दिया था। हम स्थिति की निगरानी के लिए कमेटी बना सकते हैं। हालांकि यह आज होने वाली दलीलों पर निर्भर करेगा। मंगलवार यानी आज फिर सुनवाई होगी। कोर्ट ने केंद्र से पूछा, जब दो महिलाओं के साथ घटना 4 मई को हुई, तो एफआईआर 18 मई को क्यों दर्ज हुई? 14 दिन क्यों लगे? सरकार बताए कि अभी तक जो 6000 केस दर्ज हुए हैं, उनमें कितने ऐसे हैं जो महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े हैं? कोर्ट ने कहा कि पीडि़ता का बयान है कि उसे पुलिस ने भीड़ के हवाले कर दिया था। यह निर्भया जैसा केस नहीं है। निर्भया केस भयानक था लेकिन अपनी तरह का इकलौता केस था। यहां सुनियोजित तरीके से हिंसा की गई है। जिसे सुरक्षा करनी थी, उसने ही महिलाओं को भीड़ के हवाले किया।
मणिपुर मामले में छह सवाल चीफ जस्टिस ने पूछे है। असल में सोमवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के सामने सवालों की झड़ी लगा दी। सुप्रीम कोर्ट का पहला सवाल था, घटना 4 मई को हुई, तो एफआईआर 18 मई को क्यों दर्ज हुई? दूसरा सवाल, 18 मई को केस हुआ तो मैजिस्ट्रेट कोर्ट में 20 जून को क्यों गया? तीसरा सवाल, सरकार बताए, पुलिस के केस दर्ज करने के रास्ते में कौन आया? चौथा सवाल, पुलिस को जानकारी नहीं थी कि ऐसी घटना उनके इलाके में हुई? पांचवां सवाल, कितने केस मैजिस्ट्रेट कोर्ट में रेफर हुए? कितनों में आरोपी जेल में हैं? और छठा सवाल, राज्य में प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए क्या पैकेज दिया गया? चीफ जस्टिस ने केंद्र के वकील से कहा कि याचिकाकर्ता ने न्यायिक जांच की मांग की है। नाम सुझाए हैं। हाई पावर कमेटी की बात भी उठी है। उसमें महिला जज के अलावा एक्सपर्ट होंगे। केंद्र के वकील ने कहा, सुप्रीम कोर्ट मणिपुर हिंसा में जांच की निगरानी करता है सरकार को कोई आपत्ति नहीं। चीफ जस्टिस की बेंच में उन दो महिलाओं ने अर्जी दी है जिन्हें बिना कपड़ों के परेड कराई गई थी।
ये सवाल तो कायदे से केंद्र सरकार को राज्य सरकार से पूछने थे। केंद्र यदि पश्चिम बंगाल और राजस्थान या किसी अन्य राज्य में हस्तक्षेप की बात करता है, वहां हिंसा की बात करता है, तो मणिपुर को लेकर ऐसा बयान आज तक क्यों नहीं आया? जब पानी सिर से ऊपर निकल चुका, तब राज्यपाल का बयान आया। और वहां के मुख्यमंत्री तो जैसे बेशर्मी की हद पार कर गए। बेकाबू हालात के बावजूद कह रहे हैं इस्तीफा नहीं दूंगा। अरे, ङ्क्षहसा पर तो कुछ बोलते। जून में राहुल गांधी गए, तब बहुत सारी जानकारी बाहर आईं, क्योंकि वहां इंटरनेट बंद कर दिया गया। सरकार और पुलिस क्या कर रही है, यह भी पता नहीं चल सका।
मणिपुर के हालात को जानने के लिए गए विपक्ष के 21 सदस्यों के डेलिगेशन ने सोमवार को तमाम विपक्षी सदस्यों के साथ वहां की जानकारी साझा की। जिन सांसदों ने कुछ एजेंसियों या चैनलों से बात की, उस हिसाब से आज भी हालात सुधरे नहीं हैं। वहां के राहत शिविरों की हालत अच्छी नहीं है और कुकी समुदाय के शिविर तो बदहाल हैं। मानो उनके साथ पक्षपात हो रहा है। हालात तो यही बयान कर रहे हैं। एक संगठन से जुड़े हर्ष मंदर ने भी मणिपुर के हालात का जायजा लिया था। यू ट्यूब चैनल से उनकी चर्चा बहुत गंभीर थी, जिसमें राज्य की भूमिका संदिग्ध ही नजर आई। यानि राज्य सरकार के हिंसा रोकने के प्रयास कतई उचित और पर्याप्त नहीं माने जा सकते। इसके बावजूद संसद में कार्यवाही रोककर चर्चा नहीं हो रही है। दूसरे देशों की संसद में चर्चा हो सकती है, हमारे देश में नहीं।
सत्तापक्ष कह रहा है कि वह चर्चा के लिए तैयार है। जब चर्चा के लिए सब तैयार हैं, तो हंगामा क्यों? इसके पीछे प्रमुख कारण है नियम। विपक्ष नियम 267 के तहत चर्चा चाहता है, जिसमें अन्य कार्यवाही रोककर चर्चा हो और प्रधानमंत्री वक्तव्य दें। दूसरी ओर सत्तापक्ष सीमित चर्चा चाहता है, जिसमें गृहमंत्री वक्तव्य देंगे। इसके लिए विपक्ष तैयार नहीं है। यही हंगामे का कारण भी है। लेकिन इससे हटकर सुप्रीम कोर्ट में देश के प्रधान न्यायाधीश ने जो सवाल किए हैं, उनकी गंभीरता को सरकार और पूरे देश को समझना होगा। इनके जवाब देना राज्य और केंद्र की जिम्मेदारी तो बनती है।
- संजय सक्सेना
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