प्रवासी भारतीय दिवस समारोह.. बेइज्जती, इंटरनेशनल लेवल पर...! क्या रणनीति के तहत हुआ सब कुछ या जानबूझकर ?

संजय सक्सेना
पीएम नरेंद्र मोदी जब इंदौर की शान में कशीदे कढ़ रहे थे, यहां इंदौर ही नहीं देश की इंटरनेशनल स्तर पर बेइज्जती हो रही थी। अवसर था प्रवासी भारतीय दिवस समारोह का। बाईस सौ की कैपेसिटी का हाल, रजिस्ट्रेशन कर लिया बत्तीस सौ का। फिर, पांच सौ अफसर हाल में मेहमान बन कर बैठे थे और बीजेपी के नेता ही नहीं, छर्रे भी भंडारा समझ कर ठसे हुए थे। उधर, बेचारे प्रवासी भारतीय अंदर प्रवेश के लिए जद्दोजहद कर रहे थे। एक को अटैक आ गया, उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ गया। कुछ लोग बाहर ही रह गए। पीएम मोदी का शानदार, जानदार लच्छेदार भाष नहीं सुन पाए और ना ही अंदर का नजारा देख सके। और तो और देश के ही कई उद्यमियों को भीतर सीट दे दी गई। पहले आओ पहले पाओ.. । नहीं तो भद में जाओ..। यही टैग लाइन थी सरकार की। आओ कई डॉलर खर्च करके भी प्रवासी कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बन पाए। इससे बेहतर तो ऑनलाइन जुड़ जाते, बेइज्जती तो नहीं होती। अपने ही देश में इतनी बेइज्जती...! किसी ने ये भी कहा - बड़े बेआबरू हो कर तेरे कूंचे से हम निकले। 
अब चर्चाएं चल रही हैं, कोई कह रहा है कि सीएम के खास लोग ही इसके जिम्मेदार हैं, पीएम की किरकिरी करवानी थी सो करवा दी। देश में अपनों का अपमान हो तो कोई सीएम नहीं पीएम को जिम्मेदार ठहराया जाता है। यहां सीएम शिवराज की तरफ से कहा जा रहा है कि उनका कार्यक्रम खराब करने की साज़िश हुई। वैसे कार्यक्रम के लिए सीएम ने अपने ही तो खास अफसर तैनात किए थे। पूर्व कलेक्टर मनीष सिंह को एकेवीएन प्रमुख बना कर भेजा था। बाकी मो सुलेमान और अन्य खास अफसर भी थे। फिर ये क्या कर रहे थे? पांच सौ अफसर भीतर क्यों गए? मेहमान थे या मेजबान? सवाल कई हैं, लेकिन देश और प्रदेश का नाम तो खराब हुआ ही। जिम्मेदारी तो सीएम पर ही आएगी ना!

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