-संजय सक्सेना
एक ओर यह खबर आ रही है कि भारत की अर्थव्यवस्था विश्व के अंधेरे में रोशनी की तरह है, तो दूसरी तरफ खुदरा महंगाई की बढ़ती दरों ने रिजर्व बैंक तक को परेशान करके रखा हुआ है। इससे मंदी का खतरा और बढऩे की आशंका बलवती हो गई है। पिछले महीने खुदरा महंगाई दर में वृद्धि का बड़ा कारण खाने की कीमतों में आई तेजी है, जो 22 महीने के शिखर पर जा पहुंची है। यह थमने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है।
खबर आ रही है कि खुदरा महंगाई दर सितंबर में लगातार दूसरे महीने बढक़र 7.41 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो पिछले पांच महीने में सबसे ज्यादा है। इससे भारतीय रिजर्व बैंक की परेशानी और बढ़ेगी। अनाज और सब्जियों के दाम में तेजी की वजह सितंबर में देश के कई हिस्सों में हुई बारिश से सप्लाई में आई बाधा है, जो अस्थायी दिक्कत है। लेकिन कोर इन्फ्लेशन भी ऊंची बनी हुई है। इसमें अनाज और पेट्रोल-डीजल जैसे ईंधन की महंगाई शामिल नहीं की जाती। सितंबर में कोर इन्फ्लेशन 6.1 प्रतिशत के साथ चार महीने में सबसे अधिक रही।
रिजर्व बैंक की परेशानी यह भी है कि पिछले 9 महीने से खुदरा महंगाई दर जो बैंक ने तय की थी, उसके लक्ष्य से ऊपर बनी हुई है। रिजर्व बैंक ने इसके लिए 4 प्रतिशत का लक्ष्य तय किया है और 2 प्रतिशत कम या ज्यादा की फ्लेक्सिबिलिटी भी रखी है।
जिस एक्ट के तहत रिजर्व बैंक काम करता है, उसमें कहा गया है कि 9 महीने तक खुदरा महंगाई दर के लक्ष्य से ऊपर रहने पर उसे सरकार को आने वाले वक्त में इसका अनुमान और उसे नियंत्रित करने के उपाय बताने होंगे। महंगाई कम करने और अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी की वजह से रिजर्व बैंक पिछले मई से कर्ज महंगा कर रहा है। कर्ज महंगा होने से बाजार में मांग कम होती है, और इससे महंगाई पर अंकुश लगता है। लेकिन कहीं न कहीं कर्ज महंगा होने से लोगों के जीवन यापन में आ रही मुश्किलें और बढ़ जाती हैं।
मई से अब तक रिजर्व बैंक नीतिगत दरों में 1.9 प्रतिशत की वृद्धि कर चुका है। अभी रेपो रेट 5.9 प्रतिशत पहुंच गई है, जो कोरोना महामारी से पहले के स्तर से भी अधिक है। माना जा रहा है कि दिसंबर के पहले हफ्ते में भी रिजर्व बैंक ब्याज दरों में 0.35 प्रतिशत की और वृद्धि कर सकता है। इससे आर्थिक विकास पर दबाव बन सकता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हाल ही में वित्त वर्ष 2023 में जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया था, जबकि रिजर्व बैंक ने यह अनुमान 7 प्रतिशत रखा है। ब्याज दरों में बढ़ोतरी से मांग में कमी आना स्वाभाविक है, जिससे आगे चलकर विकास की दर और कम हो सकती है। यूं भी अगले साल वैश्विक मंदी के आने का खतरा बताया जा रहा है।
मंदी से भी विकास में रुकावट आती है और इसका असर अभी से निर्यात की कमी के रूप में दिखने लगा है। दूसरी ओर, सरकार का पूरा ध्यान विकास की गति तेज करने पर होगा। वह तब रिजर्व बैंक पर मांग और निवेश बढ़ाने के लिए ब्याज दरों में कटौती का दबाव बना सकती है। ऐसे में महंगाई कम रखते हुए तेज विकास की बुनियाद पक्की करना रिजर्व बैंक के लिए आसान नहीं होगा, वह भी ऐसे दौर में जब यूक्रेन युद्ध और अमेरिका की मौद्रिक नीतियों की वजह से दुनिया भर में आर्थिक अनिश्चितता बढ़ गई है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की कुछ नीतियों की आलोचना हो रही है तो कुछ मामले में सराहना भी हो रही है। परंतु कुल मिलाकर यथार्थ यही है कि आम आदमी बेहद परेशान है। आर्थिक नीतियों या अंधेरे में रोशनी की बातें अपनी जगह हैं, विकास केवल आंकड़ों और कागजों में ही दिखाई देता है, यहां तो महंगाई डायन बनी हुई है और बेरोजगारी सुरसा। परेशान लोगों की आत्महत्याओं की दर भी बढ़ती जा रही है।
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