प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में आदिवासी तीर्थ मानगढ़ में एक सभा को संबोधित किया। रैली के लिए राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात से हजारों आदिवासियों को बुलाया गया। PM का कार्यक्रम सरकारी था, इसलिए राजस्थान के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत को बुलाया, जो कांग्रेस के हैं, पर साथ ही शिवराज सिंह चौहान (मध्य प्रदेश) और भूपेंद्र भाई पटेल (गुजरात) को भी इसमें बुलाया गया था। मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल भी बुलाए गए थे, क्योंकि वे गुजरात के आदिवासी हैं।
इस कार्यक्रम में जिन तीन राज्यों के आदिवासी बुलाए गए, वहां अगले एक से 12 महीने के अंदर चुनाव होने हैं। गुजरात में विधानसभा चुनाव का ऐलान एक-दो दिन में हो सकता है। वहीं, गुजरात से सटे मध्य प्रदेश और राजस्थान में अगले साल यानी 2023 में चुनाव होने हैं।
राजस्थान की राजधानी जयपुर से 550 किलोमीटर दूर बांसवाड़ा जिले में मानगढ़ की पहाड़ियां मौजूद हैं। मानगढ़ की पहाड़ियों की सीमा गुजरात और राजस्थान को छूती है, तो मध्य प्रदेश की सीमा भी इसके बेहद नजदीक है। इस तरह से यह तीन राज्यों का कनेक्टिंग पॉइंट है।दरअसल तीनों ही राज्यों में सत्ता हासिल करने का एक कॉमन फैक्टर है... और वो है आदिवासी वोट। तीनों राज्यों की कुल 652 में से 99 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति यानी ST के लिए रिजर्व हैं। इसके मायने है कि तीनों राज्यों की कुल 16% सीटों से आदिवासी विधायक ही चुने जाएंगे।
मध्य प्रदेश:राज्य की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 35 अनुसूचित जाति (SC) और 47 अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए रिजर्व हैं। राज्य में ST सीटों का हिस्सा 20.4% है। ऐसे में कुल सीटों का पांचवां हिस्सा रखने वाली इन सीटों की ताकत से ही चुनावी हार-जीत का फैसला होता है।
राजस्थान: प्रदेश की कुल 200 विधानसभा सीटों में से 34 अनुसूचित जाति (SC) और 25 अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए रिजर्व हैं। ST सीटों की हिस्सेदारी करीब 12.15% है। यह आंकड़ा मध्य प्रदेश की तुलना में कम है, लेकिन चुनावी हार-जीत के लिहाज से बेहद अहम है।
गुजरात: राज्य में विधानसभा की कुल 182 सीटें हैं। इनमें से 13 अनुसूचित जाति (SC) और 27 अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए रिजर्व हैं। यहां कुल सीटों का 14.83% हिस्सा ST के लिए सुरक्षित है। ऐसे में हर पार्टी की कोशिश इस वर्ग के वोटों को साधने की होती है।
आसपास की 50 सीटों पर भी असर
तीनों राज्यों में इन 99 सीटों से सटी करीब 50 दूसरी सीटों पर भी आदिवासियों के वोट हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। आदिवासी सीटों पर जीत दर्ज करने वाली पार्टी ही अमूमन सत्ता तक पहुंचती रही है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में पिछले चुनाव (2018) के नतीजे इसकी गवाही देते हैं।
पिछली बार क्या हुआ ?
गुजरात में आदिवासी वोट हासिल करके भी कांग्रेस सत्ता तो हासिल नहीं कर सकी, लेकिन उसने भाजपा को कड़ी टक्कर दी। विधानसभा चुनाव के आखीर में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की प्रधानमंत्री मोदी पर की गई विवादित टिप्पणी को भी कांग्रेस को हुए नुकसान की वजह बताया गया।
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