इतिहास के पन्नों से.. इंदिरा गांधी - निक्सन की बैठक, अटल विहारी वाजपेई की भूमिका और भारत का परचम..


आज जब देश में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बजाय राजनीतिक जंग और दुश्मनी का चलन शुरू हो गया है, हमें इतिहास के उन पन्नों को उलटना चाहिए, जो राष्ट्र हित में राजनीतिक समझदारी के गवाह है। सबूत हैं, जब विरोध को एक तरफ रखकर देश हित में पक्ष विपक्ष ने हाथ मिलाया। देश पर आई विपदा के समय धर्म, जाति और राजनीतिक विचारधारा कोई मायने नहीं रखती। ऐसा ही एक उदाहरण है 1971 का, जब पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी थी, उस समय जनसंघ से सांसद अटल बिहारी वाजपेयी ने देश को सर्वोपिर रखा और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर पाकिस्तान के हमले के खिलाफ संसद में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी का खुलकर समर्थन किया था।  इस युद्ध में पाक के 90,368 सैनिकों और नागरिकों ने सरेंडर किया था। अटल बिहारी वाजपेयी ने सदन में कहा था कि जिस तरह से इंदिरा ने इस लड़ाई में अपनी भूमिका अदा की है, वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है। सदन में युद्ध पर बहस चल रही थी और वाजपेयी के मुताबिक हमें बहस को छोडक़र इंदिरा की भूमिका पर बात करनी चाहिए जो किसी दुर्गा से कम नहीं थी। 
इतिहास के उस अध्याय की कुछ घटनाओं का जिक्र आज आवश्यक है- 
साल 1971 और महीना नवंबर था। 
अगर भारत पाकिस्तान में नाक में दम करेगा तो अमेरिका अपना जाल बंद नहीं करेगा। भारत को सबक सिखाया जाएगा। -रिचर्ड निक्सन
भारत अमेरिका को दोस्त मानता है। बॉस नहीं। भारत अपनी किस्मत खुद लिखने में सक्षम है। हम जानते हैं और अच्छी तरह से जानते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार प्रत्येक के साथ कैसे व्यवहार करना है। - इंदिरा गांधी

भारतीय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने इन सटीक शब्दों को व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के साथ बैठकर, आंखों से आंख मिलाकर व्यक्त किया। इस घटना के बारे में तत्कालीन विदेश मंत्री और एनएसए हेनरी किसिंजर ने अपनी आत्मकथा में बताया था।
वह दिन था जब भारत-यूएस संयुक्त मीडिया संबोधन को इंदिरा गांधी ने रद्द कर दिया, और व्हाइट हाउस से अपने अनोखे अंदाज में चली गईं। किसिंजर ने इंदिरा गांधी को अपनी कार में बिठाते हुए टिप्पणी की थी, प्रधानमंत्री महोदया, क्या आपको नहीं लगता कि आप राष्ट्रपति के साथ थोड़ा और धैर्यवान हो सकती थीं?
इंदिरा गांधी ने उत्तर दिया, सचिव महोदय, आपके बहुमूल्य सुझाव के लिए धन्यवाद। एक विकासशील देश होने के नाते, हमारी रीढ़ सीधी है और सभी अत्याचारों से लडऩे के लिए पर्याप्त इच्छाशक्ति और संसाधन हैं। हम साबित करेंगे कि वे दिन चले गए जब एक शक्ति शासन कर सकती थी। और अक्सर हजारों मील दूर से किसी भी राष्ट्र को नियंत्रित करते थे।
इसके बाद, जैसे ही उनकी एयर इंडिया की फ्लाइट दिल्ली में उतरी, इंदिरा गांधी ने विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को अपने आवास पर बुलाया। बंद दरवाजों के पीछे एक घंटे की चर्चा के बाद वाजपेयी जल्दी-जल्दी लौटते दिखे. इसके बाद यह ज्ञात हुआ कि वाजपेयी संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे।
बीबीसी के डोनाल्ड पॉल ने वाजपेयी से एक सवाल किया था, इंदिरा गांधी आपको एक कट्टर आलोचक के रूप में मानती हैं। इसके बावजूद, क्या आप सुनिश्चित हैं कि आप संयुक्त राष्ट्र में अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ इसके पक्ष में होंगे? मौजूदा सरकार के विपक्ष में होकर भी? 
वाजपेयी के पास एक प्रतिक्रिया थी- एक गुलाब एक बगीचे को सजाता है, जैसे कि एक लिली। प्रत्येक इस विचार से घिरा हुआ है कि वे व्यक्तिगत रूप से सबसे सुंदर हैं। जब उद्यान संकट में पड़ता है, तो यह कोई रहस्य नहीं है कि बगीचे को सुरक्षित रखना है इसकी सुंदरता के रूप में। मैं आज बगीचे को बचाने आया हूं। इसे भारतीय लोकतंत्र कहा जाता है। 
परिणामी इतिहास हम सभी जानते हैं। अमेरिका ने पाकिस्तान को 270 मशहूर पैटन टैंक भेजे। उन्होंने विश्व मीडिया को यह दिखाने के लिए बुलाया कि ये टैंक विशेष तकनीक के तहत बनाए गए थे, और इस प्रकार अविनाशी हैं। इरादा बहुत साफ था। यह बाकी दुनिया के लिए एक चेतावनी संकेत था कि कोई भी भारत की मदद न करे।
अमेरिका यहीं नहीं रुका। भारत को तेल की आपूर्ति करने वाली एकमात्र अमेरिकी कंपनी बर्मा-शेल को बंद करने के लिए कहा गया था। उन्हें अमेरिका द्वारा भारत के साथ अब और व्यवहार करना बंद करने के लिए सख्ती से कहा गया था। उसके बाद भारत का इतिहास केवल वापस लडऩे के बारे में था। इंदिरा गांधी की तीक्ष्ण कूटनीति ने सुनिश्चित किया कि तेल यूक्रेन से आए।
सिर्फ एक दिन तक चली लड़ाई ने थार रेगिस्तान में 270 पैटन टैंकों में से अधिकांश को नष्ट कर दिया। नष्ट किए गए टैंकों के टुकड़ों को चौराहों- ट्रैफिक क्रॉसिंग पर प्रदर्शित करने के लिए भारत लाया गया था। राजस्थान के उष्ण मरुस्थल आज भी साक्षी के रूप में खड़े हैं, जहां अमेरिकी गौरव का गला घोंट दिया गया था।
उसके बाद अठारह दिनों तक चले युद्ध की परिणति 93,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को बंदी बनाने में हुई। मुजीबर रहमान लाहौर जेल से रिहा हुए। अब 72 मार्च का महीना था - इंदिरा गांधी ने भारतीय संसद में बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को माँ दुर्गा के रूप में संबोधित किया। 
इन घटनाओं में लंबे समय तक चलने वाले नतीजों में एक पैकेट सामने आया। भारत की अपनी तेल कंपनी, अर्थात इंडियन ऑयल अस्तित्व में आया। भारत ने दुनिया की नजरों में खुद को ताकतवर देश के तौर पर पेश किया। भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व मोर्चा बनाकर किया। इसका नेतृत्व निर्विवाद था। हालांकि इस तरह की ताकत, समय और घटनाएं काल और इतिहास की महान गहराइयों में डूब गईं।
आज भारत देश में तीस राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं और विभिन्न राज्यों में अलग-अलग विचारधाराओं की सरकारें हैं और वो सरकारें भारत के संविधान के अनुरूप अपनी सुविधा के अनुसार अर्थ निकाल लेती हैं। और भारत संघ व राज्यों का आपस में समन्वय, जो पिछले कुछ वर्षों में कम हो गया है। साथ-साथ राजनीतिक दलों की आपसी खींचतान चरम पर है। इस 135 करोड़ के देश में 25 30 राजनीतिक दल अपने अपने स्वार्थ के लिए लड़ रहे हैं और विश्व समुदाय इस लड़ाई को देखकर मजाक उड़ा रहा है और इसका दुरुपयोग कर भारत को कमजोर कर रहा है। 
ये घटनाएं आज इतिहास में मील के पत्थर के रूप में मौजूद हैं, जिससे पीढिय़ों को प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। इस साल भारत-पाक बांग्लादेश युद्ध की 50वीं बरसी है। हमारे बच्चों को इसे पढऩा चाहिए और हमें भारत पर गर्व होना चाहिए। ऐसा न हो कि हम भूल जाएं। 
जय हिन्द!

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