इकबाल बुलंद मनीष का....!
-संजय सक्सेना
मध्यप्रदेश की प्रशासनिक दुनिया में इस महीने और इकबाल सिंह बैंस का इकबाल बुलंद रहेगा, लेकिन उनके सबसे प्रिय अफसर इंदौर के पूर्व कलेक्टर मनीष सिंह का इकबाल लंबे समय तक बुलंद रहेगा, ऐसा माना जा रहा है। वैसे राज्य में दो मनीष सिंह हैं। एक सीनियर मनीष सिंह हैं, जिन्हें ईमानदार और एक अच्छा अफसर माना जाता है। वो कभी विवादों में नहीं रहे। दूसरे मनीष सिंह का मामला अलग है। उनके पिता मोती सिंह और चाचा जवाहर सिंह कभी स्वर्गीय अर्जुन सिंह की आंखों के तारे रहे। पिता आईएएस थे और चाचा इंजीनियर। इतनी मेहरबानी रही स्वर्गीय अर्जुन सिंह की कि चाचा को भोपाल विकास प्राधिकरण से सीपीए में भेजा और सरकारी नौकरी में उनकी सेवा मर्ज करवा दी गई। वो बरसों तक एक पद ऊपर रहे और सीपीए के प्रभारी बन कर लंबे समय तक उन्होंने राज किया।
बात राज्य सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में पहुंचे मनीष सिंह की हो रही है। उन्हें भोपाल में कई पदों पर रखा गया। फिर नगर निगम भोपाल में आयुक्त बनाया गया, जबकि जेएनएनयूआरएम योजना के लिए आईएएस अधिकारी की अनिवार्यता थी। यह मामला स्वर्गीय बाबूलाल गौर के समय का है। उन्होंने वरिष्ठ आईएएस मनीष सिंह के नाम पर छोटे मनीष की नियुक्ति करके केंद्र सरकार को वरिष्ठ का हवाला दे दिया। हालांकि बाद में उन्हें वरिष्ठ मनीष सिंह को ही रखना पड़ा। स्वर्गीय अर्जुन सिंह, फिर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बाद स्वर्गीय बाबूलाल गौर की कृपा के बाद मनीष सिंह को वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी आशीर्वाद मिल ही गया। हां, इसके लिए मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस माध्यम बने। बैंस पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खास प्रशासनिक सलाहकारों में गिने जाते थे और एक समय तो यह आया था, जब बैंस मंत्रालय से बाहर पदस्थ किए गए, लेकिन सीएम हाउस से फाइलें उनके पर्यावरण परिसर स्थित कार्यालय में ही भेजी जाती थीं। वहां से सीएम हाउस चलाते थे बैंस। कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री कमलनाथ बने। उसके बाद उनकी सरकार गिरी और शिवराज सिंह चौहान को फिर से कमान मिल गई। उन्होंने कमलनाथ सरकार के मुख्य सचिव को हटा दिया। इकबाल सिंह बैंस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ ही उनकी पत्नी श्रीमती साधना सिंह के भी प्रिय बन गए। मुख्यसचिव के तौर पर उनके पास इतनी शक्ति आ गई, कि मंत्रियों को भी उनके आगे लाइन लगानी पड़ रही है। प्रशासनिक मुखिया और मुख्यमंत्री निवास की मुखिया, दोनों की कृपा ऐसी बरसी कि मनीष सिंह इंदौर नगर निगम आयुक्त बनाए गए और वहां से सिंहस्थ की व्यवस्थाओं के प्रभारी भी बना दिए गए। इंदौर रहकर उज्जैन में दादागिरी। सिंहस्थ के तमाम भ्रष्टाचारों को एक तरफ रखते हुए मनीष सिंह को इंदौर कलेक्टरी की जिम्मेदारी दे दी गई। जबकि उस समय इंदौर के लिए उनकी वरिष्ठता थी ही नहीं। लेकिन मुख्य सचिव की आंखों के तारे जो थे।
इंदौर कलेक्टर के रूप में मनीष ङ्क्षसह ने खुलकर अपना लंगोट घुमाया। हालत ये हो गई कि मंत्रियों तक की पूंछ परख कम हो गई। सीधे सीएम या सीएस, बाकी कोई नहीं। और तो और इंदौर के सर्वशक्तिमान नेता कहे जाने वाले भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की भी राजनीतिक ताकत एकदम कम कर दी गई। प्रशासन में उनका दखल भी शून्य ही कर दिया गया। कहा तो यह भी जाता है कि मनीष सिंह की पहल पर ही उज्जैन नगर निगम आयुक्त की रवानगी हुई और वहां नई पदस्थापना भी उनके माध्यम से ही की गई। सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में एक दर्जन कलेक्टरों की पदस्थापना में मनीष सिंह का हाथ रहा। अब कितना लेन-देन हुआ, इसके कोई प्रमाण तो होते नहीं। और जरूरी भी नहीं कि लेन देन नकद में हुआ हो।
अब चूंकि प्रदेश के विधानसभा चुनाव आने वाले हैं। चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों का पालन करना था। मनीष सिंह को इंदौर में तीन साल हालांकि अभी पूरे नहीं हुए थे, लेकिन होने वाले थे। सो उन्हें कुछ दिन पहले ही हटाकर एमडी एकेवीएन बना दिया गया। पूर्व में भी वह इस निगम मेें इंदौर पदस्थ रह चुके हैं। फिर वहीं पहुंच गए। इसके पीछे भी बड़ा उद्देश्य है। कुछ दिन बाद प्रदेश में निवेशक सम्मेलन होना है। सो सीएम ने एक तो प्रमुख सचिव संजय शुक्ला को हटा दिया प्रमुख सचिव उद्योग के पद से। दूसरे एकेवीएन के एमडी के रूप में मनीष सिंह को इस आयोजन की कमान सौंपने का फैसला कर लिया। एक बात और, चूंकि अब लगभग तय हो गया है कि इकबाल सिंह बैंस को मुख्य सचिव के रूप में सेवावृद्धि नहीं मिल रही, यह भी मनीष सिंह को हटाने का एक कारण बताया जाता है। इंदौर कलेक्टर रहते बहुत कुछ सफेद किया तो काफी काला-पीला भी किया ही होगा। लोग कहते हैं कि जमीनों के कई मामले निपटा दिए गए। वैध-अवैध का भी खेल खूब चला। अब सरकार और प्रशासन, सब कुछ तो अपने हाथ में। इंदौर-मंत्रालय-सीएम हाउस। एक रूट बन गया। शक्ति के संचरण का और...। बाकी आप समझ ही गए होंगे।
मनीष सिंह पर भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने तो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष हमला कर भी दिया, लेकिन विपक्ष में बैठे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का प्यार उन पर आज भी उमड़ता है, ऐसा बताते हैं। सो कांग्रेस में बैठे लोगों ने भी न तो सिंहस्थ के समय के आरोपों को तूल दिया और न ही इंदौर के मामलों को लेकर कभी कोई विरोध या आंदोलन नहीं किया। सरकार बदले या यही आए, कुछ अधिकारी ऐसे हैं, जो दोनों ही सरकारों के मुखियाओं के आंखों के तारे बने रहते हैं। कुछ बदल जाते हैं। यह तो दुनियादारी है। सब समझते हैं, समरथ को नहीं दोष गुसाईं।
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