बीजेपी नेता हरदम चुनाव के लिए तैयार
वैसे तो भाजपा नेता अकसर कहते हैं कि उनका दल किसी भी वक्त चुनाव के लिए तैयार रहता है, लेकिन इन दिनों जिस तरह भारतीय जनता पार्टी में जिस तरह शीर्ष स्तर पर बैठकों का दौर चल रहा है, मंत्रियों और सांसदों को जिले-जिले भेजकर मोदी सरकार के नौ साल की उपलब्धियों का प्रचार किया जा रहा है और प्रचार का सारा जोर मोदी सरकार के नौ साल के नारे पर है, उससे संकेत हैं कि भाजपा किसी भी समय (समय से पूर्व या समय पर) लोकसभा चुनावों का सामना करने के लिए खुद को तैयार कर रही है, जबकि विपक्ष अभी एकजुटता की रट से आगे नहीं बढ़ सका है। मई के आखिरी सप्ताह में मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में भाजपा ने मीडिया के साथ जो संवाद किया, उसमें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सरकार के नौ साल के कामकाज पर सारा जोर दिया और महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने जो प्रस्तुतिकरण (पीपीटी)
दिखाया उसमें विस्तार से मोदी सरकार के नौ सालों की उपलब्धियों की तुलना यूपीए सरकार के दस साल के कामकाज से करते हुए बताया गया कि कैसे मोदी सरकार ने नौ सालों में कितना बेहतर काम किया है। भाजपा ने अपने प्रचार के लिए जो नया नारा गढ़ा है वह है 'सेवा सुशासन और गरीब कल्याण।'
अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने के भाजपा के एक दिग्गज नेता के मुताबिक जबकि अभी चुनावों में करीब एक साल है और आम तौर पर चुनाव से दो-तीन महीने पहले पार्टी अपने पूरे कार्यकाल की उपलब्धियों का ब्यौरा देती है। लेकिन इस बार जिस तरह दस साल पूरे होने से पहले ही नौ सालों के कामकाज और उपलब्धियों को इस तरह पेश किया जा रहा है मानों इसी साल लोकसभा के चुनाव होने हैं, इससे साफ है कि सरकार और पार्टी के शीर्ष स्तर पर लोकसभा चुनावों को लेकर गंभीर मंथन हो रहा है।
चुनावों में दो जगह बीजेपी की हार
इस मुद्दे पर सरकार और पार्टी के कुछ उच्च स्तरीय सूत्रों का कहना है जिस तरह 2022 के आखिर में हुए गुजरात, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली नगर निगम के चुनावों में दो जगह हिमाचल प्रदेश और दिल्ली नगर निगम में भाजपा की हार हुई उससे पार्टी शिखर स्तर पर असहज हुई, लेकिन 2023 की शुरुआत में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में भी भले ही कांग्रेस की करारी हार हुई, लेकिन भाजपा को जैसी उम्मीद थी वैसे नतीजे नहीं आए। त्रिपुरा में उसकी सरकार जरूर बनी लेकिन सीटें कम हुईं और स्थिरता के लिए उसे गठबंधन करना पड़ा। मेघालय में कोर्नाड संगमा की जिस पार्टी से गठबंधन तोड़कर भाजपा राज्य की सभी सीटों पर अकेली चुनाव लड़ी, वहां उसकी सीटें और मत प्रतिशत दोनों कम हुए।
कर्नाटक चुनावों में कांग्रेस के हाथों मिली करारी हार
सिर्फ नगालैंड में जरूर भाजपा अपनी सहयोगी एनडीपीपी के सहारे कुछ बेहतर प्रदर्शन कर सकी।हालांकि पूर्वोत्तर के नतीजों को भाजपा ने अपनी प्रचार और मीडिया रणनीति से एक बड़ी विजय के रूप में प्रचारित करके अपने पक्ष में जो माहौल बनाया था, मई में हुए कर्नाटक चुनावों में कांग्रेस के हाथों मिली करारी हार ने उसे बिगाड़ दिया। इसके बाद सरकार और पार्टी के उच्च स्तर पर देश के सियासी मूड और माहौल का आकलन शुरू हो गया। उधर भारत जोड़ो पदयात्रा के बाद राहुल गांधी की छवि में लगातार सुधार और विपक्ष की राजनीति में कांग्रेस के मजबूत होने और सरकार के खिलाफ लगातार बढ़ती विपक्षी दलों की गोलबंदी ने भाजपा में शीर्ष स्तर पर माथे पर बल ला दिए हैं। राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा में उन्हें जिस तरह भारतीय समुदाय और स्थानीय मीडिया ने गंभीरता से लिया और सुना है उससे भी भाजपा असहज है। दक्षिण से उत्तर की भारत जोड़ो पद यात्रा की कामयाबी के बाद से ही सितंबर में पश्चिम से पूरब तक की दूसरी भारत जोड़ो यात्रा की चलने वाली चर्चा भी कर्नाटक के नतीजों के बाद भाजपा के रणनीतिकारों को सोचने पर मजबूर कर रही है।
गर्मी के कारण लोकसभा चुनावों में मतदान कम होने की आशंका
इन सूत्रों के मुताबिक मौसम विशेषज्ञों के मुताबिक अगले साल मार्च के बाद जरूरत से ज्यादा गरमी पड़ने की संभावना है और अगर ऐसा हुआ, तो लोकसभा चुनावों में मतदान कम होने की आशंका को भी भाजपा अपने मुफीद नहीं मानती है। हालांकि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर कुछ अच्छी खबरें सरकार को सुकून भी दे रही हैं। दो हजार रुपये की नोटबंदी ने आर्थिक मोर्चे पर कोई संकट नहीं पैदा किया और मोजूदा तिमाही की विकास दर भी अनुमान से ज्यादा रही है। खुदरा महंगाई में भी मामूली सी कमी हुई है। लेकिन दूसरी तरफ मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से मिलने वाले फीड बैक ने पार्टी को सांसत में डाल दिया है।
वसुंधरा राजे को साधना भी चुनौती
राजस्थान में अगर कांग्रेस के लिए अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट का झगड़ा सिरदर्द है, तो भाजपा में भी वसुंधरा राजे को साधना भी चुनौती है। प्रधानमंत्री मोदी की हाल ही में हुई राजस्थान यात्रा में वसुंधरा को भी मंच पर ससम्मान बिठाया गया, लेकिन ग्वालियर राजपरिवार की बेटी महज इससे संतुष्ट नहीं हैं, उन्हें राजस्थान भाजपा की पूरी कमान चाहिए और वह भी चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा के साथ। उधर गहलोत सरकार की अनेक लोकलुभावन
योजनाओं और घोषणाओं ने सचिन की बगावत के बावजूद कांग्रेस को मुकाबले में ला दिया है। यह भी भाजपा की चिंता का सबब है। हाल ही में उड़ीसा के बालासोर में हुई भीषण रेल दुर्घटना ने रेलवे में सुधार के सरकारी दावों पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। उधर कर्नाटक में बजरंग दल पर पाबंदी की कांग्रेसी घोषणा को बजरंग बली के सम्मान से जोड़ने की पूरी कवायद और प्रधानमंत्री मोदी के तूफानी प्रचार के बावजूद भाजपा की करारी शिकस्त ने हिंदुत्व के ध्रुवीकरण और मोदी मैजिक के हर समय संकट मोचक होने पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
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